Sunday, 23 September 2007

हमारा झारखंड, प्‍यारा झारखंड

यह अब सिर्फ कहने की बात रह गयी है। न तो अब यहां प्‍यार की कोई जगह है, और न ही इंसानियत ही बचा है। पूरे झारखंड में शायद ही कोई ऐसा जिला, शहर अथवा कस्‍बा है, जहां गरीबों का हक नहीं मारा जा रहा हो। चाहे वह लाल कार्ड बनाने में हो, गरीब लोगों के बीच राशन वितरण करने की बात हो या फिर गरीबों को अन्‍य किसी सरकारी लाभ पहुंचाने की बात हो। सभी में धांधली, कमीशनखोरी व भ्रष्‍टाचार हावी है। इन सबमें सरकारी महकमे के लोगों के साथ-साथ स्‍थानीय तथाकथित समाज के रक्षक नेता भी शामिल होते हैं। इसमें भी अगर लोकतंत्र के चौथे स्‍तंभ माने जाने वाले मीडिया भी चुप्‍पी साध ले तो भगवान भी गरीबों को नहीं बचा सकता।
सरकारी विभागों की बात करें तो सबको पता है कि वहां कैसे काम चलता है। बिना पैसों के एक भी फाइल इधर से उधर नहीं घिसकती। वहीं नेताओं का सहारा लें, तो वे सिर्फ कहने को जनप्रतिनिधि हैं, वे भी बिना आर्थिक लाभ के काम की ओर देखते तक नहीं।
अब हम मीडिया की वर्तमान स्थिति पर बात करें तो सबसे पहले यह सवाल उठता है कि क्‍या मीडिया आज अपनी दायित्‍व को ईमानदारीपूर्वक निभा रहा है। हम यहां किसी एक मीडिया की बात नहीं कर रहे। यह प्रश्‍न सभी मीडिया पर लागू होता है, चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या फिर इलेक्‍ट्रानिक मीडिया। मैं यहां आपसबों को बता दूं कि मैं सिर्फ झारखंड में मीडिया की स्थिति पर बात कर रहा हूं। चूंकि मैं मीडिया से जुड़ा हुआ हूं, इसलिए स्थिति को करीब से जान रहा हूं। सच पूछिए तो मुझे बहुत दुख होता है, जब कुछ गलत होता है और वह खबर समाज के लोगों के बीच नहीं पहुंच पाती। इसके कारण कई हैं। परंतु एक मुख्‍य कारण है कि आज के समय में मीडिया कमर्शियलाइज हो गयी है। विज्ञापन आदि के लिए मीडिया अब खबरों से भी समझौता करने लगी है। जबकि मीडिया के लिए ऐसा करना कतई शोभा नहीं देता। समाज के विकास में उनकी अहम भूमिका रहती है। समाज के हर तबक के लोगों को उनभर उनकी खबरों पर भरोसा होता है। समय रहते इसपर ध्‍यान नहीं दिया गया तो, संभव है कि लोकतंत्र के इस चौथे स्‍तंभ पर से लोगों का भरोसा उठ जाएगा।
ये सब मैं क्‍यों लिख रहा हूं मुझे पता नहीं, शायद यह मेरे मन का गुस्‍सा हो या भ्रम। खैर जो भी, जैसा भी हो पर यह हमारा झारखंड हमेशा रहेगा प्‍यारा झारखंड …………..

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