Thursday 11 September, 2008

आज के पत्र, पत्रकार और समाचर

“मेरे दर्द को जो जुबां मिले,
मुझे मेरा नामो निशां मिले।”
यह पंक्तियां कवि फैज ने लिखी थी पत्रकारिता को लेकर। लेकिन आज की वर्तमान स्थिति में समाचार पत्र और पत्रकारिता दोनो ही अपने मार्ग से भटक गये हैं। कहा जाता है समाचार पत्र समाज का थर्मामीटर है, जिससे सामाजिक वातावरण का तापमान जाना जा सकता है। परंतु अभी की स्थिति में मीडिया से सामाजिक वातावरण का तापमान नहीं जाना जा सकता, लेकिन हां इसके विपरित सामाजिक वातावरण का तापमान बढ़ाने का काम मीडिया जरुर कर रही है। खबरों को सनसनी बनाने के चक्‍कर में समाज में भय और हिंसा को फैलाने का काम कर रहे हैं। इस कार्य में सबसे आगे चल रहे हैं इलेक्‍ट्रानिक मीडिया। वे ब्रेकिंग न्‍यूज और एक्‍सक्‍लूसिव न्‍यूज देने के चक्‍कर में अपने स्‍वस्‍थ समाज के निर्माण का दायित्‍व को पूरी तरह भूल गये हैं। ऐसा नहीं है कि लोग इसे नहीं समझ रहे हैं। हर कोई अब दिखाये गये समाचारों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, अच्‍छे को अच्‍छा और बुरे को बुरा कहते हैं। परंतु इस बुराई पर रोक के लिए, मीडिया को अपना कर्त्‍तव्‍य बोध कराने के लिए पहल कौन करेगा, यह कोई नहीं जानता।
आजादी के बाद पत्रकारिता व्‍यक्ति, समाज और राष्‍ट्र के नवनिर्माण के प्रति प्रतिबद्ध हुई। समाज के नवनिर्माण में उन्‍होंने अहम भूमिका भी निभाई। परंतु अब बहुविध रस गंध वाली पत्रकारिता विषय वस्‍तु, शिल्‍प, मनोरंजन, खेल आदि के कारण बहुद्देशीय हो चली है। भावुकता के स्‍थान पर व्‍यावसायिक बु‍द्धि, व्‍यापारिक अनुभव और व्‍यापारिक चातुर्य से पूर्ण पत्रकारिता उद्मम हो चली है। मानवीय मूल्‍य और आदर्श तो प्रौद्मोगिक के शिकार हैं। सर्वत्र बाजार लगा है, चीजें खरीदी-बेची जा रही है। पत्रकारिता भी उपभोक्‍ता बाजार की वस्‍तु है। जो पूंजी लगाता है वह मुनाफा चाहेगा ही, फलत: सेक्‍स, हत्‍या, डकैती, बलात्‍कार जैसी सनसनी बेचना उनकी बाध्‍यता है। आश्‍चर्य, भय, आतंक, घृणा उत्‍पन्‍न करने वाले समाचार पत्र अपने वैचारिक खोखलेपन और व्‍यावसायिकता के चलते अपनी अस्मिता पर प्रश्‍न चिह्न लगा रहे हैं।
देश की आजादी से पहले और बाद तक समाचार पञों का एक “मिशन” था, परंतु अब मिशन न रहकर मात्र मशीन बन गया है। आप स्‍वयं देख सकते हैं आजकल अखबारों में सिर्फ विज्ञापन ही नये होते हैं और खबरें बासी। इन सब के बावजूद कुछ गिनेत-चुने पत्र हैं जो अपने दायित्‍व को निर्वाह करने में जुटे हुए हैं।
एक समय था जब मीडिया ने देश की उन्‍नति में अहम भूमिका अदा की थी। समाज में नई चेतना उत्‍पन्‍न की थी, परंतु अभी की स्थिति में मीडिया अपने उद्देश्‍य से भटक गया है, उसे कर्त्‍तव्‍यबोध कराने के लिए हम देशवासियों को पहल करनी होगी। उन्‍हें याद दिलाना होगा कि समाज में समरसता फैलाना उनका काम है न कि आतंक और भय।
वहीं हमारे पत्रकारों की मजबूरी है कि वे अपने हाउस की उम्‍मीदों पर खरा कंपनी द्वारा दिये गये दिशा-निर्देश के अंदर रहकर ही न्‍यूज लिखना है अन्‍यथा आप समझ सकते हैं।
अत: आप सभी बुद्धिजीवियों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि आप सभी अपने-अपने स्‍तर से इसके लिए प्रयास करें तो एक स्‍वच्‍छ समाज का निर्माण संभव हो सकेगा, जिसकी वर्तमान समय में हमारे देश को जरुरत है। इसके लिए हम सभी देशवासी आप सभी बुद्धिजीवियों का आभारी रहेंगे।

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